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"महबूबा मुफ्ती की नसरल्लाह के प्रति समर्थन पर असम के सीएम हिमंत सरमा का सवाल: 'हिंदू सैनिकों की मौत पर क्यों नहीं दुख?'"

महबूबा मुफ्ती, जो जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की प्रमुख हैं, ने हाल ही में अपना चुनाव प्रचार रद्द कर दिया। इसकी वजह थी उनका लेबनान और गाजा के शहीदों के प्रति एकजुटता दिखाना, खासकर हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह के प्रति। नसरल्लाह, जिन्हें इजरायल की सेना ने हवाई हमले में मार दिया, उन पर महबूबा ने दुख जताया। महबूबा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि वह "लेबनान और गाजा के शहीदों, विशेष रूप से हसन नसरल्लाह के साथ एकजुटता में" अपना अभियान रोक रही हैं। 

   Assam chief minister Himanta Biswa Sarma.


महबूबा मुफ्ती के इस कदम से राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने महबूबा के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। सरमा ने सवाल उठाया कि जब हिंदू सैनिकों को आतंकवादी मारते हैं, तो महबूबा या उनके जैसे दूसरे नेताओं को कोई दुख क्यों नहीं होता? सरमा ने हरियाणा के सोनीपत में एक चुनावी रैली के दौरान कहा, "यह इजरायल और फिलिस्तीन का मामला है, लेकिन कश्मीर में महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि वह चुनाव प्रचार नहीं करेंगी क्योंकि उन्हें नसरल्लाह की मौत का दुख है।"

सरमा ने महबूबा मुफ्ती के साथ-साथ फारूक अब्दुल्ला और राहुल गांधी को भी घेरा। उनका कहना था कि जब आतंकवादी हिंदू सैनिकों को मारते हैं, तो इन नेताओं को दुख क्यों नहीं होता? सरमा के इस बयान के बाद, सोशल मीडिया पर भी चर्चा छिड़ गई और लोगों ने महबूबा मुफ्ती के फैसले पर सवाल उठाए।

महबूबा मुफ्ती के इस फैसले की भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने भी कड़ी आलोचना की। जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने इसे "मगरमच्छ के आंसू" कहा। उन्होंने कहा कि इस तरह की हरकतों से कुछ हासिल नहीं होगा और लोगों को असली मंशा समझनी चाहिए। गुप्ता का मानना था कि हमें इंसानियत के आधार पर बात करनी चाहिए, न कि इस तरह की साजिशों के जरिए।

अब अगर बात करें हसन नसरल्लाह की, तो वह हिजबुल्लाह संगठन के प्रमुख थे, जो लेबनान का एक शिया मुस्लिम संगठन है। इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच लंबे समय से दुश्मनी रही है। इजरायल की सेना ने बेरूत में एक हवाई हमले में 64 वर्षीय नसरल्लाह को मार गिराया। इजरायली सेना ने घोषणा की कि नसरल्लाह की मौत हो चुकी है और इसके बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि नसरल्लाह की हत्या "आने वाले वर्षों में क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदलने" के लिए एक जरूरी कदम था।

महबूबा मुफ्ती ने जब नसरल्लाह के प्रति एकजुटता जताई, तो इससे भारतीय राजनीति में कई सवाल उठे। कुछ लोगों का मानना था कि महबूबा को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए था, खासकर जब यह मामला भारत का नहीं है। वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि महबूबा ने इंसानियत के आधार पर यह कदम उठाया।

महबूबा मुफ्ती की इस कार्रवाई ने कश्मीर की राजनीति में भी हलचल मचा दी है। उनकी पार्टी PDP और उनके समर्थकों का मानना है कि महबूबा ने एकजुटता दिखाकर सही कदम उठाया है। लेकिन विरोधी दलों का कहना है कि ऐसे समय में जब देश के सामने कई बड़े मुद्दे हैं, महबूबा का यह फैसला अनुचित है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती पर निशाना साधा है। उन्होंने महबूबा मुफ्ती के उस फैसले की आलोचना की, जिसमें उन्होंने हिज़बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की मौत पर दुख जताते हुए अपना चुनाव प्रचार रद्द कर दिया था। 

महबूबा ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि वह लेबनान और गाज़ा के शहीदों, खासकर हसन नसरल्लाह के प्रति एकजुटता दिखाते हुए चुनाव प्रचार नहीं करेंगी। इसके बाद हिमंत सरमा ने सवाल किया कि जब आतंकवादी हिंदू सैनिकों को मारते हैं, तब महबूबा मुफ्ती और अन्य नेताओं को दुख क्यों नहीं होता?

सरमा ने कहा कि इजरायल और फिलिस्तीन का युद्ध वहां का मामला है, लेकिन महबूबा मुफ्ती भारत में रहकर नसरल्लाह की मौत पर दुख जताकर चुनाव अभियान रद्द कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि महबूबा मुफ्ती और कुछ अन्य नेता आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति दिखा रहे हैं, जो गलत है।

बीजेपी के अन्य नेताओं ने भी महबूबा के इस कदम की आलोचना की और इसे "मगरमच्छ के आंसू" बताया। उनका कहना है कि लोगों को महबूबा की मंशा समझनी चाहिए और हमें हमेशा मानवता के आधार पर बात करनी चाहिए, न कि ऐसे कदम उठाकर लोगों को गुमराह करना चाहिए।

कुल मिलाकर, महबूबा मुफ्ती का यह कदम भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुका है, और अब यह देखना बाकी है कि इसका असर उनके राजनीतिक करियर पर क्या पड़ता है।


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